सूत्र :सम्प्रति परिमुक्तो द्वाभ्याम् II3/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सृष्टि समय में पुरूष दोनों वासना और भोग-बद्ध होता है।
प्रश्न- परिमुक्त शब्द का अर्थ तो छूटना है, आप बद्ध अर्थ करते है?
उत्तर- पहले अध्याय के सूत्रों में पुरूष को भोक्तत्वादिविशेषण दे चुके हैं इस कारण यहां अभोक्ता कहना अयोग्य है। दूसरे संसार दशा में ही पुरूष को सुख-दुख न होंगे, तो क्या अवस्था में होंगे और जो सुख-दुख ही नहीं, तो मुक्ति का उपाय भी कोई न करेगा। तीसरे परिमुक्त शब्द का अर्थ मुक्त करना भी अयोग्य है। यहां ‘परिमुक्त’ शब्द का अर्थ बद्ध करना ही ठीक है। अब स्थूल और सूक्षम दोनों तरह के शरीरों के भेद कहते हैं।