सूत्र :तदन्नमयत्वश्रुतेश्च II3/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह लिंग शरीर अन्नमय है कारण अनित्य है, क्योंकि इस विषय में श्रुतियां प्रमाण देती हैं। ‘‘अन्नमयं हि सौम्य! मन आपोमयः प्राणः तेजोमयी वाक्।’’ हे सौम्य! यह मन अन्नमय है, प्राण जलमय है, वाणी तेजोमयी है। यद्यपि मन आदि कार्य भौतिक नहीं हैं, तथापि दूसरे के मेल से इनमें घटना-बढ़ना दीखता है, इस कारण से ही अन्नमय मन को माना है।
प्रश्न- यदि लिंग शरीर अचेतन है तो उसकी शरीरों के वास्ते उत्पत्ति क्यों हैं?