सूत्र :न स्वातन्त्र्यात्तदृते छायावच्चित्रवच्च II3/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वह लिंग शरीर बिना किसी आश्रय के नहीं रह सकता, जैसे-छाया किसी आश्रय के विना नहीं रह सकती, और तसवीर बिना आधार के नहीं खिंच सकती, इस तरह लिंग शरीर भी स्थूल शरीर के बिना नहीं ठहर सकता है।
प्रश्न- यदि लिंग शरीर मूत्र्त द्रव्य है तो वायु आदि के समान उसका भी आधार आकाश हो सकता है, और जगह कल्पना करने से क्या तात्पर्यं है?