सूत्र :मूर्तत्वेऽपि न संघातयोगात्तरणिवत् II3/13
सूत्र संख्या :13
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि लिंग शरीर मूत्र्तत्व भी है तथापि वह किसी स्थान के बिना नहीं रह सकता, जैसे-बहुत से तेज इकट्टे होकर बिन पार्थिव (पृथ्वी से पैदा होने वाले) द्रव्य के आधार के नहीं रह सकते, इसी तरह लिंग शरीर भी किसी आधार के नहीं रह सकता।
प्रश्न- लिंग शरीर का परिमाण क्या है?