सूत्र :पूर्वोत्पत्तेस्तत्कार्यत्वं भोगादेकस्य नेतरस्य II3/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : लिंग-शरीर की उपाधियों से ही पुरूष को सुख-दुःख होते हैं, क्योंकि संसार के आदि में लिंग-शरीर की ही उत्पत्ति है, इस कारण सुखादिक इसके कार्य हैं, अतः एक लिंग-शरीर की उपाधियों से ही पुरूष को सुखादिक हैं, किन्तु स्थूल शरीर की उपाधियों से नहीं होते, क्योंकि तब स्थूल शरीर की उपाधियों से नहीं होते, क्योंकि जब स्थूल शरीर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, तब उसमें सुखादिक नहीं देखने में आते।
प्रश्न- सूक्ष्म शरीर का क्या स्वरूप है?