सूत्र :अविशेषाद्विशेषारम्भः II3/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अब हम तीसरे अध्यायय में प्रधान तो प्रकृति है उसका स्थूल कार्य और महाभूत और दो के शरीर यह सब कहते हैं।
अविशेषात् अर्थात् जिससे छोटी और कोई वस्तु न हो सके ऐसे सूक्ष्म भूत अर्थात् पंचतन्मात्रायों से विशेष स्थूल महाभूतों में हो सकता है, और सूक्ष्मभूत योगी महात्माओं के हृदय में प्रकाश होते रहते हैं।