सूत्र :समानकर्मयोगे बुद्धेः प्राधान्यं लोकवल्लोकवत् II2/47
सूत्र संख्या :47
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि सब इन्द्रियों के साथ पुरूष का समान कमयोग है, तथापि बुद्धि ही मुख्यता है जैसे-राज्य के रहने वाले चांडाल आदि से द्विजाति पर्यन्त सब ही लोग राजा की प्रजा हैं तथापि जमींदार से मुख्य मन्त्रों ही गिना जाता है। इस दृष्टान्त को संसार परम्परा के समान यहां समझ लेना चाहिए।
प्रश्न- लोकवत् वह शब्द दुबारा क्यों कहा?
उत्तर- यह दुबारा का कहना अध्याय की समाप्ति दिखाता है।
प्रश्न- इस अध्याय में कितने विषय कहे गये हैं?
उत्तर- प्रकृति का कार्य, प्रकृति की सूक्ष्मता, दो प्रकार की इन्द्रियां, अन्तःकरण आदि का वर्ण है इतने विषय कहे गये हैं।
।। इति सांख्यदर्शंने द्वितीयोऽध्यायः समाप्तः ।।