सूत्र :तत्कर्मार्जितत्वा-त्तदर्थमभिचेष्टा लोकवत् II2/46
सूत्र संख्या :46
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जबकि संसार में दीखता है कि जो आदमी कुल्हाड़ी को खरीदता है, उस कुल्हाड़ी के व्यापार से खरीदने वाले को फल भी होता है, इस प्रकार मन भी पुरूष के कर्मों से पैदा होता है अतएव मन आदि काफल पुरूष को मिलता है। इस कारण मनुष्य की मन इन्द्रिय ही मुख्य है। यह समाधान पहले भी आये हैं कि पुरूष कर्म से रहित है लेकिन पुरूष में कर्म का आरोपण होता है। दृष्टांत भी इस विषय का दे चुके हैं जैसे-राजा के सेवक इत्यादि युद्ध कर और हार-जीत राजा की गिनी जाती है इस प्रकार ही पुरूष में कर्म का आरोपण होता है।