सूत्र :आपेक्षिको गुणप्रधानभावः क्रियाविशेषात् II2/45
सूत्र संख्या :45
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : त्रिया के कमती-बढ़ती होने से गुणों का भी प्रधान भाव एक दूसरे की अपेक्षा से होना है, जैसे-नेत्र आदि के व्यापार में अहंकार के व्यापार में मन प्रधान है।
प्रश्न- इस पुरूष की मन इन्द्रिय ही मुख्य है अर्थात् अन्य इन्द्रियां गौण है?