सूत्र :तथाशेषसंस्काराधारत्वात् II2/42
सूत्र संख्या :42
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जितने भी संस्कार हैं सबको मन ही धारण करता है यदि नेत्र आदि अहंकार अथवा मन इनका ही प्रधान मानें तो अन्धे, बहरे इत्यादिकों को स्मरण की शक्ति न होना चाहिए, लेकिन देखने में आता है कि उन लोगों की स्मरण शक्ति अच्छी होती है, और तत्व-ज्ञान के समय में अहंकार का लय भी हो जाता है, तो स्मरण- शक्ति नष्ट नहीं होती जो कि स्वभाविक बुद्धि का धर्म है।