सूत्र :सम्भवेन्न स्वतः II2/44
सूत्र संख्या :44
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अपने आप पुरूष को स्मृति नहीं हो सकती, क्योंकि पुरूष कूटस्थ है।
प्रश्न- जबकि मन को करण माना है, तो और इन्द्रियों से क्या प्रयोजन है।
उत्तर- बिना नेत्रादि इन्द्रियों के मन अपना कोई भी काम नहीं कर सकता। यदि नेत्रादि इन्द्रियों का काम कर सकता है, तो आदमी को भी देखने की शक्ति होनी चाहिए। क्योंकि मन तो उसके भी हो होता है। परन्तु संसार में ऐसा देखने में नहीं आता, इससे प्रत्यक्ष सिद्ध होता है कि मन मुख्य है और सब इन्द्रियां गौण है।
प्रश्न- जबकि मन को ही मुख्य माना है तो पहिले सूत्र में मन को उभयात्मक क्यों माना है?