सूत्र :सामान्यकरणवृत्तिः प्राणाद्या वायवः पञ्च II2/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्राण वायु आदि को लेकर समान प्र्यन्त जो पांच वायु हैं यह अन्तःकरण की साधारण वृत्ति कहलाते हैं अर्थात् जो वायु हृदय में रहता है, उसका नाम प्राण है, और जो गुदा में रहता है, उसका नाम अपान है, और जो कण्ठ में रहता है, उसका नाम उदान है, जो नाभि में रहता है, उसका नाम समान है, और जो सारे शरीर में रहता है उसका नाम व्यान वायु है यह सब अन्तःकरण के परिणामी भेद हैं, और जो बहुत से प्राण और वायु को एक मानते हैं उनका मानना इस सबब से अयोग्य है कि ‘‘एतस्माज्जायते प्राणः मनः सर्वेन्द्रियाणि च। खं वायुज्र्यातिरापश्य पृथ्वी विश्वस्य धारिणी’’ इसमें प्राण और वायु को भिन्न-भिन्न माना है। अब आचार्य अपने सिद्धान्त का प्रकाश करते हैं, जैसे कई पुरूष इन्द्रियों की वृत्ति त्रम से (एक समय में एक ही इन्द्रिय काम करेगी) मानते हैं, उसको अयुक्त सिद्ध करते हैं।