सूत्र :द्रष्टृत्वादिरात्मनः करणत्वमिन्द्रियाणाम् II2/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन्द्रियों का करणत्व आत्मा है अर्थात् जो-जो इन्द्रियां अपने-अपने काम करने में लगती हैं, वे आत्मा के समीप होने से कर सकती है इससे आत्मा को परिणामित्व की प्राप्ति नहीं हो सकती, जैसे चुम्बक पत्थर के संसर्गं से लोहे खिंच आता है ऐसे ही आत्मा के संसर्गं से नेत्र आदि इन्द्रियों में देखने आदि की शक्ति हो जाती है। अब अन्तःकरण की वृत्तियों को भी कहते हैं।