सूत्र :रूपादिरसमलान्त उभयोः II2/28
सूत्र संख्या :28
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रूप को आदि लेकर और मल त्याग पर्यन्त ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय के विषय हैं, जैसे नेत्र का रूप, चिह्ना का रस, नाक का गन्ध, त्वचा का स्पर्श कान का शब्द, मुख का वचन, हाथ का पकड़ना पैरों का चलना, लिंग का पेशाब करना, गुदा का विष्ठा करना- यह दशों विषय भिन्न-भिन्न हैं और जिसका आश्रय लेकर यह इन्द्रिय संज्ञा को प्राप्त विषय होती है उस हेतु को भी कहते हैं।