सूत्र :पुरुषार्थं करणोद्भवोऽप्यदृष्ठोल्लासात् II2/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पुरूष के वारूते इन्द्रियों की प्रवृत्ति भी उसी काम के वश से है, जो पहिले प्रकृति को कह आये हैं, और इसका दृष्टान्त भी ३५ वें सूत्र में दे चुके हैं, कि संयोग से जैसे एक का गुण दूसरे में मालम होता है उसी प्रकार प्रकृति का कर्म पुरूष संयोग से है, वही इन्द्रियों की प्रवृत्ति में हेतु है। इस सूत्र में ‘अपि’ शब्द से पूर्व कही हुई प्रकृति की याद दिलाकर पुरूष को कर्म से कुछ अंश में मुक्त किया है और फिर भी इसी पक्ष को पुष्ट करने के वास्ते दृष्टान्त देंगे। दूसरे के वास्ते भी अपने आप प्रवृत्ति होती है, इसमें दृष्टान्त भी देते हैं।