सूत्र :न कल्पनाविरोधः प्रमाणदृष्टस्य II2/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो वस्तु प्रमाण ही से सिद्ध है, उसके विरूद्ध कल्पना करना न्याय के विरूद्ध है, क्योंकि महादादिकों में जो गुण दीखते है वे महदादिकों के कार्यों में भी दीखते हैं। इस प्रकार प्रत्यक्षादि प्रमाणों से जो सिद्ध है वह न्याय के विरूद्ध नहीं हो सकता। कारण वास्तव में तो मन एक ही है, लेकिन उस कारण की शक्तियों के भेद से दस इन्द्रियां अपने-अपने कार्य करने में तत्पर रहती है और इस ही बात को अगला सूत्र भी पुष्ट करता है।