सूत्र :तदुत्पत्तिश्रुतेर्वि-नाशदर्शनाच्च II2/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : नित्य नहीं है, किंतु अनित्य है, क्योंकि ‘‘एतस्माज्जायते प्राणो मनः सर्वेनिद्रयाणि च’’ इससे ही सब इन्द्रियां और मन पैदा होते हैं, इत्यादि श्रुतियों से सिद्ध है कि मन का नाश भी देखने में आता हैं, क्योंकि बुढ़ापे में चक्षु (तेज) इन्द्रियों की तरह नाश भी होता है। इससे मन नित्य नहीं है।
प्रश्न- नासिक आदि इन्द्रियों के गोलक चिह्यों को ही इन्द्रिय माना है?