सूत्र :आहङ्कारि-कत्वश्रुतेर्न भौतिकानि II2/20
सूत्र संख्या :20
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बहुत-सी श्रुतियां ऐसी देखने में आती हैं, जो अहंकार से ही इन्द्रियों की उत्पत्ति को कहती हैं, जैसे- (एकोऽहं बहुस्याम्) एक मैं बहुत रूपों को धारण करता हूं इत्यादि। इस कारण आकाशादि पंचभूतों से इन्द्रियों की उत्पत्तिकहना ठीक नहीं।
प्रश्न- ‘‘अग्नि वागप्येति त्रातं प्राणः’’ अग्नि में वाणी लय होती है, और पवन में प्राण लय होता है। जबकि अग्नि इत्यादि में श्रुतियां कहती हैं कि अग्नि में वाणी लय हो जाती है और वायु में प्राण-लय हो जाता है, तो उत्पत्ति भी इनसे क्यों न मानी जाय?