सूत्र :कर्मेन्द्रियबुद्धीन्द्रियैरान्तरमेकादशकम् II2/19
सूत्र संख्या :19
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वाणी, हाथ, पांव, गुदा, उपस्थ (मूत्रस्थान) यह कर्मेनिद्रय कहलाती हैं। नेत्र, कान, त्वचा रसना, प्राण (नाक) यह पांचों ज्ञानेन्द्रिय कहलाती हैं।
प्रश्न- इन्द्रियों की उत्पत्ति पंचभूतों से है?