सूत्र :अक्षसम्बन्धात्साक्षित्वम् II1/161
सूत्र संख्या :161
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पुरूष को जो साक्षित्व कहा है, वह मन आदि के साथ साक्षत् सम्बन्ध में काह है, किंतु वास्तव में पुरूष साक्षी नहीं है, क्योंकि पाणिनिमुनि ने साक्षी शब्द का ऐसा अर्थ किया है ‘‘साक्षाद् द्रष्टरि संज्ञायाम्’’। इस सूत्र से साक्षी शब्द निपातन किया है, कि जितने समय में निरन्तर देखता है उतने ही समय में उसको साक्षी संज्ञा है। इसमें यह सिद्ध होता है, कि जितने समय तक पुरूष का मन से सम्बन्ध रहता है, उतने ही समय तक पुरूष की साक्षी संज्ञा रहती है, अथवा मन के संसर्ग से पुरूष में दुःख सुख आदि को माना जाय, तो पुरूष को वास्तव में दुःखादि से मुक्ति होने में यह दोष होगा कि-