सूत्र :औदासीन्यं चेति II1/163
सूत्र संख्या :163
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अर्थ- और पुरूष को वास्तव में मुक्त मानें तो औदासीन्य दोष होगा, क्योंकि पुरूष का किसी से सम्बन्ध ही नहीं है, तो वह किसी कर्म का कत्र्ता क्यों होगा। जब किसी कर्म का कत्र्ता तो रहा ही नहीं तो बन्धन् आदि में क्यों पड़ेगा, तब उसमें औदासीन्य दोष होगा। इस सूत्र का भाव और पुरूष कत्र्तव्य अगले सुत्र से प्रतिपादन करेंगे।
प्रश्न- ‘‘औदासीन्यत्र्चेति’’ इस सूत्र में ‘इति’ शब्द क्यों है?
उत्तर- यह इस वास्ते है कि पुरूष की सिद्धि में दोष आदि का खंडन कर चुके।