सूत्र :उपरागात्कर्तृत्वं चित्सांनिध्याच्चित्सांनिध्यात् II1/164
सूत्र संख्या :164
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पुरूष में जो कर्तृत्व है, सो मन के उपराग से है, और मन में जो चित्तशक्ति है; वह पुरूष के संसर्ग से है। यहां पर जो ‘‘चित्सा-निध्यात्’’ यह दो बार कहा है सो अध्याय की समाप्ति का जताने वाला है और इस अध्याय में शास्त्र के मुख्य चार ही अर्थ कहे गये हैं ‘‘हेय’’ त्यागने के लायक, ‘‘हान’’ त्यागना। ‘‘हेय’’ और ‘‘हान’’ और इन दोनों के हेतु।
।। इति सांख्यदर्शंने प्रथमोऽध्यायः समाप्तः ।।