सूत्र :वामदेवादिर्मुक्तो नाद्वैतम् II1/157
सूत्र संख्या :157
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि वामदेवादिक मुक्त हो गये, लेकिन अद्वैत स्वरूप तो नहीं हुए, क्योंकि यदि मुक्त जीव सब ही अद्वैतस्वरूप हो जाते तो आज तक सहज-सहज सब पुरूष अद्वैत होकर पुरूष का नाममात्र भी न रहता।
प्रश्न- वामदेवादिकों का परम मोक्ष नहीं हुआ?