सूत्र :व्यावृत्तोभयरूपः II1/160
सूत्र संख्या :160
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मुक्ति संसार के दुःख दोनों ही से विलक्षण है, अर्थात् मुक्ति में पुरूष को शान्त सुख होता है स्वरूप है।
प्रश्न- जबकि पुरूष को शांत साक्षो कह चुके वह साक्षीपन मोक्ष समय में नहीं हो सकता, क्योंकि वहां मनादि का अभाव है, तो पुरूष सदा एक रूप रहता है, यह कहना असंगत हुआ?