सूत्र :नाद्वैतश्रुतिविरोधो जातिपरत्वात् II1/154
सूत्र संख्या :154
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अद्वैत की प्रतिपादन करने वाली श्रुतियों से विरोध न होगा कि क्योंकि वहां पर अद्वैत शब्द जाति पर है, जैसे एक आदमी के समान कोई नहीं है, जैसाकि संसार में देखने में आता है कि अमुक पुरूष अद्वितीय है। इसका आशय यह है कि उसके समान दूसरा और कोई नहीं है इस ही प्रकार ईश्वर को भी अद्वैत व अद्वितीय कहते हैं।
प्रश्न- जिस रीति से अद्वैत श्रुतियों का विरोध दूर करने के वास्ते ईश्वर में अद्वैत शब्द जाति पर कहा है, उस प्रकार ही पुरूष को भी ईश्वर का ही रूपान्तर क्यों नहीं मानते हैं।