सूत्र :एवमेकत्वेन परिवर्त-मानस्य न विरुद्धधर्माध्यासः II1/152
सूत्र संख्या :152
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि एक ही ब्रह्य सम्पूर्ण उपाधियों से मिलकर जीव रूप हो जाता है, तो उसमें विरूद्ध धर्म दुःख बन्धनादि का अध्याय अवश्य होता इस कारण जीव ब्रह्य को एक मानना योग नहीं है।