सूत्र :अन्यधर्मत्वेऽपि नारोपात्तत्सिद्धिरेकत्वात् II1/153
सूत्र संख्या :153
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मन आदिकों का धर्म जो सुख-दुःखादि धर्म का पुरूष में आरोप करने पर भी पुरूष को परिणामित्व को सिद्धि नहीं हो सकती क्योंकि सुख दुःखादि पुरूष के धर्म नहीं है किन्तु मन के धर्म हैं। पुरूष जन्मान्तरमें एक ही बना रहता है, जब हर एक शरीर में एक-एक पुरूष है तो नाना पुरूष सिद्ध हुए और ‘‘एकमेवाद्वितीयं ब्रह्य’’ इत्यादिक अद्वैत प्रतिपादक भुतियों से विरोध होगा?