सूत्र :जन्मादिव्यव-स्थातः पुरुषबहुत्वम् II1/149
सूत्र संख्या :149
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : संसार में जन्म को आदि लेकर अनेक अवस्था देखने में आती हैं तो इससे ही सिद्ध होता कि पुरूष बहुत हैं, क्योंकि यदि सब अन्तःकरण की वृत्तियों का आधार एक ही पुरूष होता, तो यह घट है, इस घट को मैं जानता हूं, इस घट को मैं देखता हूं। इस प्रकार का अनुभव जिस क्षण में एक अन्तःकरण को होता हैं, उसी क्षण में सब अन्तः कारणें को होना चाहिए, क्योंकि वह एक ही सबका आश्रयी है, लेकिन संसार में ऐसा देखने में नहीं आता है, इस कारण पुरूष अनेक हैं, और जो कोई-कोई टीकाकार इस सूत्र का यह अर्थ करते हैं कि जन्मादि व्यवस्था ही से बहुत प्रतीत होते है वस्तुतः नहीं। उनका कहना इस कारण अयोग्य है ‘‘पुण्यवान स्वर्गे जयते’’ पापो नरके, अज्ञोवध्यते, ज्ञानी मुच्यते। ‘‘पुण्यात्मा स्वर्ग में पैदा होता है, और पापी नरक में पैदा होता है, अज्ञ बन्धन का प्राप्त होता है, ज्ञानी मुक्त होता है, इत्यादि श्रुतियां बहुत्व का प्रतिपादन करती हैं उनसे विरोध होगा।
प्रश्न- एक पुरूष को ही अनेक जन्मादि व्यवस्था हो सकती हैं या एक पुरूष को ही जन्मादि व्यवस्था है?