सूत्र :उपाधिभेदेऽप्येकस्य नानायोग आकाशस्येव घटादिभिः II1/150
सूत्र संख्या :150
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उपाधि (शरीरादि) भेद होने पर भी एक पुरूष का अने जन्मों में अनेक शरीरों से योग होता हैं, जैसे कि एक आकाश का घटादिकों के साथ योग होता है एक ही पुरूष जन्मान्तर में अनेक उपाधियों को धारण करता है और अनेक योग बाला कहाता है, आकाश के समान, जैसे कि आकाश एक ही है, लेकिन जब घट के साथ योग को प्राप्त होता है, तो घटाकाश कहलाता है और मठ के साथ योग को प्राप्त होता है, तो मठाकाश कहलाता है। लेकिन वे उपाधियां आकाश को एक ही समय और एक ही देश में एक साथ नहीं हो सकतीं, अर्थात जितने स्थान आकाश का नाम मठाकाश है, उस वक्त उस ही आकाश का नाम घटाकाश किसी प्रकार नहीं हो सकता, किन्तु मठ की उपाधि का नाश करके दूसरे वक्त घट के स्स्थापन होने पर घटाकाश कह सकते हैं। इस प्रकार ही पुरूष भी देशकाल में अनेक उपाधियों को धारण करके नाना योग वाला कहने में आता है अर्थात् एक ही जीव कभी मनुष्य कभी पश, पक्षी आदि नाना प्रकार के शरीर धारण करके एक ही रहता हैं, इस ही प्रकार अनेक जीव अनेक उपाधियों को धारण करते हैं, यह ज्ञाननियों का ही अनुभव हो सकता है, और भी इस ही विषय में कहते हैं।