सूत्र :श्रुत्या सिद्धस्य नापलापस्तत्प्रत्यक्षबाधात् II1/147
सूत्र संख्या :147
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि उक्त कथन से पुरूष में गुण कल्पना किया जाता है, लेकिन युक्ति और श्रति इन दोनों से विरूद्ध है, क्योंकि श्रुतियों में भी साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च इत्यादि विशेषणों से पुरूष को निर्गुण ही प्रतिपादन किया है, एवं उस अनुभव प्रत्यक्ष में दोष भी हो सकता है, क्योंकि वह अनुभव किसको होगा। यदि पुरूष को होगा, तो ज्ञान को पुरूष से पृथक् वस्तु मानना पड़ेगा। इस कारण पुरूष निर्गुण है।
प्रश्न-जो पुरूष प्रकाश स्वरूप ही है, तो सुषुप्ति आदि अवस्थाओं की कल्पना नहीं हो सकती, क्योंकि उन अवस्थाओं में प्रकाश स्वरूपता नहीं रहती। यह जीव पर शंका है?