सूत्र :जडप्रकाशायोगात्प्रकाशः II1/145
सूत्र संख्या :145
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इस विषय में वैशेषिक कहते हैं कि प्रकाश स्वरूप आत्मा मन के संयोग होने से वाध्य ज्ञान से मुक्त होता है और परमात्मा प्रकाशमय हैं, जड़ प्रकृति से प्रकाशमय नहीं हो सकता। लोक में जड़ (प्रकाश रहित) कोष्ठ लोष्ठादिक है, इसमें प्रकाश किसी तरह नहीं देखने में आता। इस कारण सूर्यादिक के समान प्रकाश रूप पुरूष जानना चाहिए।
प्रश्न- प्रकाश स्वरूप आत्मा में तमादि गुणों का भाव है, या नहीं?