सूत्र :कैवल्यार्थं प्रवृत्तेः II1/144
सूत्र संख्या :144
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि शरीरादिक को ही भोक्ता माना जाएगा, तो दूसरा दोष यह भी होगा कि मोक्ष के उपाय करने में किसी की प्रवृत्ति न होगी, क्योंकि शरीरादिक के विनाश होने से आप ही मोक्ष होना सम्भव है, और तीसरा दोष यह होगा, कि सुख दुःखादि प्रकृति के कारण स्वाभाविक धर्म हैं, और स्वभाव से किसी का नाश नहीं होता, इस कारण मोक्ष असम्भव हैं, इससे पुरूष को ही भोक्ता मानना ठीक है। पूर्वं कहे हुए प्रमाणों से पुरूष को २३ तत्वों से भिन्न कह चुके हैं, अब पुरूष क्या वस्तु है, यह बिचार करते हैं।