सूत्र :अधिष्ठानाच्चेति II1/142
सूत्र संख्या :142
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : और भी कारण है, पुरूष अधिष्ठान होने से प्रकृति से जुदा ही है। अधिष्ठान अधिष्ठेय संयोग से मालूम पड़ता है, कि दो के बिना संयोग हो ही नहीं सकता। इससे सिद्ध हुआ कि पुरूष प्रकृति से भिन्न है। आशय यह है कि जब प्रकृति को आधार कहते हैं तब उसमें आधेय भी अवश्य होना चाहिए, वह आधेय पुरूष है।