सूत्र :त्रिगुणादिविपर्ययात् II1/141
सूत्र संख्या :141
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : त्रिगुण अर्थात् सत्व, रज, तम, आदि शब्द से मोह जड़त्वादि, इनसे विपरीत होने से पुरूष प्रकृति नहीं हो सकता, अर्थात् वह प्रकृति से भिन्न है, क्योंकि त्रिगुणत्व विशिष्ट का नाम प्रकृति हैं, अर्थात् सत्वोगुण, रजोगुण तमोगुण इन से जिसका सम्बन्ध है उसका ही नाम प्रकृति माना है, और जिसमें नित्यत्व, शुद्धत्व, बद्धत्व, मुक्तत्व, यह धर्म है उसका ही नाम पुरूष है, तो विचारना चाहिए प्रकृति और पुरूष में कितना भेद है। इस ही कारण पुरूष को प्रकृति नहीं मान सकते हैं।