DARSHAN
दर्शन शास्त्र : सांख्य दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Shlok

सूत्र :संहतपरार्थत्वात् II1/140
सूत्र संख्या :140

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जैसें शैय्या आदिक संहत पदार्थ दूसरे के वास्ते के सुख देने वाले होते हैं, अपने वास्ते नहीं। इसी प्रकार प्रकृत्यादिक पदार्थ भी दूसरे के वास्ते है। स्पष्ट आशय यह है, कि प्रकृति आदि जितने संहत पदार्थ हैं, वह किसी दूसरे के वास्ते हैं और जो वह दूसरा है, उसी का नाम पुरूष है, और संहत देहादि से भिन्न का नाम पुरूष है। यह पहिले भी भी कह आये हैं फिर यहाँ कहना हेतुओं को केवल गिनती बढ़ानी है। प्रश्न- पुरूष को प्रकृति ही क्यों न माना जाय, इसमें क्या कारण हैं?