सूत्र :सामान्येन विवादाभावाद्धर्मवन्न साधनम् II1/138
सूत्र संख्या :138
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस वस्तु में सामान्य ही से विवाद नहीं है उसकी सिद्धि में साधनों की कोई अपेक्षा नही है जैसे-प्रकृति में सामान्य ही से विवाद है, उसकी सिद्धि के वास्ते साधनों की अपेक्षा आवश्यक है, वैसे पुरूष में नहीं हैं, क्योंकि बिना चेतन के संसार में अंधेरा प्रतीत (मालूम) होगा, यहां तक कि बौद्ध भी सामान्यतः कर्म भोक्ता अहं पदार्थ को पुरूष मानते हैं, तो उसमें किसी प्रकार का विवाद नहीं हो सकता। उदाहरण, धर्मवत्-धर्म की तरह जैसे कि धर्म को सभी बौद्ध नास्तिक आदि मानते हैं। वैसे ही एक चेतन को सभी मानते हैं।
प्रश्न- पुरूष किसको कहते हैं।