सूत्र :कार्या-त्कारणानुमानं तत्साहित्यात् II1/135
सूत्र संख्या :135
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कार्य से कारण का अनुमान होता है, क्योंकि जहां-जहाँ कार्य होता है, वहीं-वहीं कारण भी होता है, और महादादिक भी अपने कार्यों के उपादान कारण हैं, जैसे कि तिल-रूप कार्य स्वगत (अपने में रहने वाले) तेल का उपादान कारण है। इस कथन से महदादिकों के कार्यत्व में किसी प्रकार की हानि नहीं है।