सूत्र :तयोरन्यत्वे तुच्छत्वम् II1/134
सूत्र संख्या :134
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : हां! हानि है, तुच्छत्व दोष की प्राप्ति होती है।, क्योंकि लोग में प्रकृति और पुरूष के सिवाय अन्य को अबस्तु माना है अर्थात् प्रकृति और पुरूष यह दो ही वस्तु हैं और सब अवस्तु हैं, अतएव इसकों प्रकृति का कार्य मानना चाहिए। यदि दूसरा मानें तो इसके कारण भी दूसरे ही मानने पड़ेंगे। इस प्रकार अनुमान सिद्ध करते है।