सूत्र :शक्तितश्चेति II1/132
सूत्र संख्या :132
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : महादादिक पुरूष के कारण हैं, इसी में महदादिकों को कार्यत्व है, क्योंकि इनके बिना पुरूष कुढ नही कर सकता, जैसे कि नेत्रों के बिना पुरूष कुछ नहीं कर सकता, अर्थात् देख नहीं सकता, और पुरूष के बिना नेत्र में देखने की शक्ति नहीं हो सकती, क्योंकि नेत्र तो जड़ है, इस कारण मनुष्य दर्शन रूप त्रिया को नेत्र रूपी कारण के बिना नहीं रह सकता, इस ही सबब से नेत्रादिकों को कार्यत्व माना है। इस सूत्र में इति शब्द से यह जानना चाहिए कि प्रत्येक कार्य सिद्धि में इतने ही प्रमाण होते है।