सूत्र :समन्वयात् II1/131
सूत्र संख्या :131
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मन को आदि ले के जो कि महादादियों के अवान्तर भेद हैं सो अन्नादिकों के मिलने से बढ़ते रहते हैं, और भूखे रहने से क्षीण होते हैं। इस पूर्वोंक्त समन्वय से भी महादादिकों का कार्यत्व मालूम होता है, क्योंकि जो नित्य पदार्थ होता है वह अवयव (टुकड़ा) रहित होता है अतः उनका घटना बढ़ना नहीं हो सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि घटना-बढ़ना आदि कार्य में हो सकता है। कारण में नही हो सकता। मन आदि अन्त के मिलने से बढ़ते हैं, और न मिलने से घटते हैं। इसी से महादादिकों का कार्यत्व सिद्ध होता है।