सूत्र :वादिविप्रतिपत्तेस्तदसिद्धिरिति चेत् II1/111
सूत्र संख्या :111
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि संसार में वादी लोग प्रकृति की असिद्धि में यह यह हेतु दें कि कोई ब्रह्य को जगत् का कारण मानते हैं, कोई परमाणुओं को, कोई जगत् को अनुत्पन्न ही मानते हैं, तो इस जगत्-रूप कार्यसे प्रकृति के अनुमान करने में क्या हेतु है? प्रथम तो जगत् का कार्य होना साध्य है, दूसरे कारण ब्रह्य है, या प्रकृति यह संशयात्मक हैं, इसलिये प्रकृति असिद्धि है।