सूत्र :सर्वत्र सर्वदा सर्वासम्भवात् II1/116
सूत्र संख्या :116
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह कथन सर्वथा असम्भव है, क्योंकि संसार में ऐसे वाक्यों का साधक कोई भी दृष्टान्तादिक नहीं दीखता कि (असतः सज्जायते) अर्थात् असत् से सत् होता है। अतः मानना पड़ेगा कि (सतः सज्जायते) अर्थात् सत् ही उत्पन्न होता है।