सूत्र :सौक्ष्म्यात्तद-नुपलब्धिः II1/109
सूत्र संख्या :109
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रकृति और पुरूष का सूक्ष्म होने से प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता, सूक्ष्म से अत्यन्त अणु होना अभिप्राय नहीं, क्योंकि प्रकृति और पुरूष सर्वत्र व्यापक हैं इनका प्रत्यक्ष योगियों को ही होता है।
प्रश्न- प्रकृति के प्रत्यक्ष न होने से यह क्यों माना जावे; कि अति सूक्ष्म होने से प्रकृति का प्रत्यक्ष नहीं होता किन्तु प्रकृति का अभाव ही मानना चाहिये, नहीं तो शशश्रृड़ग की अप्रतीति भी सूक्ष्म होने से माननी पड़ेगी।