सूत्र :तथाप्येकतरदृष्ट्यैकतरसिद्धेर्नापलापः II1/112
सूत्र संख्या :112
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब एक कार्य को देखकर कारण का अनुमान होता है और कारण को देखकर कार्य का अनुमान होता हैं, तो प्रकृति को कारण सिद्ध मानना अनुचित नहीं, क्योंकि सब कार्य प्रकृति में लय होते हैं। द्वितीय पुरूष जो अपरिणामी उसको, परिणामी प्रकृति के अविवेक से वन्ध और विवेक से मुक्ति होती हैं।