सूत्र :त्रिविधविरोधापत्तेः II1/113
सूत्र संख्या :113
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सब कार्य तीन प्रकार के होते हैं-अतीत अर्थात् गुजरा हुआ, दूसरे वर्तमान, तीसरे आने वाला। यदि कार्य को सत् न मानें तो यह तीन प्रकार का व्यावहार जैसे घट टूट गया, अथवा घट वर्तमान है, अर्थवा घट होगा, नहीं, बन सकेगा। दूसरे दुःख-सुख मोहादि की उत्पत्ति में विरोध होगा, क्योंकि ब्रह्य तो आनन्दस्वरूप होने से दुःखादि से शून्य है, और परमाणु और प्रकृति में नाममात्र भेद है इसलिए प्रकृति जगत् का कारण सिद्ध है, अगले सूत्र में इसे और भी पुष्ट करते हैं-