सूत्र :नोभयं च तत्त्वाख्याने II1/107
सूत्र संख्या :107
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब पुरूष प्रमाणों से यथार्थ ज्ञान को प्राप्त हो जाता हैं, तो सुख दुःख दोनों नहीं रहते, क्योंकि जब हमें यह निश्चय हो जाता है।, हम शरीरनहीं और न यह शरीर हमारा है, किन्तु प्रकृति का विकार है, तो इसके दुःख सुख का हमें लेश भी नहीं प्रतीत होता।