DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :इच्छाद्वेषप्रयत्न-सुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिङ्गम् II1/1/10
सूत्र संख्या :10

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : आत्मा के यह लिंग (चिन्ह) हैं, इच्छा, द्वेष, सुख-दुःख प्रयत्न और ज्ञान यह छः(आत्मा) के लिंग अर्थात् प्रत्यापक हैं।

व्याख्या :
प्रश्न-‘इच्छा’ किसे कहते हैं। उत्तर-जिस प्रकार की वस्तु से पहले सुख मिला था, उसी प्रकार की वस्तु को देखकर प्राप्त करने के विचार को ‘इच्छा’ कहते हैं। प्रश्न-द्वेष किसे कहते हैं ? उत्तर-जिस प्रकार की वस्तु से पहले कष्ट हुआ था उसी प्रकार की वस्तु को देखकर , दूर ही से अपनयन का विचार द्वेष कहलाता हैं। प्रश्न-प्रयत्न किसे कहते हैं ? उत्तर-दुःख के कारणों को दूर और सुख के कारणों को प्राप्त करने की क्रिया को प्रयत्न कहते हैं। प्रश्न-ज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर-आत्मा के अनुकूल और प्रतिकूल पदार्थों को पृथक-पृथक जानना ज्ञान कहलाता है। शेष सुख, दुःख का कारण लक्षण तत्त सूत्रों में ही वर्णन करेंगे। प्रश्न-शरीर किसे कहते हैं ?

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