DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :स द्विविधो दृष्टादृष्टार्थत्वात् II1/1/8
सूत्र संख्या :8

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : शब्द दो प्रकार का है। प्रथम वह जिसका अभिप्राय संसार में इन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है। द्वितीय वह जिसका अर्थ इन्द्रियों से नहीं जाना जा सकता । यह दोनों प्रकार के ‘शब्द’ प्रमाण कहलाते हैं। यथा किसी ने कहा कि जिसकी पुत्र की इच्छा हो वह यज्ञ करे। यहां यज्ञ द्वारा पुत्र का उत्पन्न होना या न होना इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण हो सकता है। दूसरे किसी ने कहा कि जिसको स्वर्ग की कामना हो तो वह यज्ञ करे-सो स्वर्ग की प्राप्ति इन्द्रियों से नहीं जानी जा सकती । क्योंकि स्वर्ग सुख का नाम है और सुख किसी इन्द्रिय का विषय नहीं।

व्याख्या :
प्रश्न- इन प्रमाणों से कौन -2 सी वस्तुएं जानी जा सकती हैं ?

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