सूत्र :आत्मशरीरेन्द्रिया-र्थबुद्धिमनःप्रवृत्तिदोषप्रेत्यभावफलदुःखापवर्गास्तु प्रमेयम् II1/1/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यह बारह वस्तु ‘प्राप्य’ अर्थात् प्रमाणों से जानी जानी जा सकती हैं, प्रथम ‘आत्मा’ दो प्रकार का है एक तो वह जो सारे संसार में व्याप्त है और सर्वज्ञ है, दूसरे वह जो कर्मों का फल भोगने वाला है। जिसके भोग का आयतन (मकान) यह शरीर है और भोग के साधन रूप ‘इन्द्रियें हैं, और भोग्य पदार्थ’ अर्थात जो इन्द्रियों के विषय हैं, वे हैं जो इन्द्रियों द्वारा अनुभव किये जाते हैं और भोग (बुद्धि अर्थात्) ‘ज्ञान’ है। सब पदार्थ इन्द्रियों से नहीं जाने जा सकते अतः परोक्ष पदार्थों का अनुभव कराने वाला ‘मन’ है और मन में राग-द्वेष दो प्रकार के द्वेष उत्पन्न होते हैं, जिनसे प्रवृत्ति अर्थात् किसी पदार्थ के त्याग वा अंगीकार करने का प्रयत्न उत्पन्न होता है। ‘प्रेत्य भाव’ जन्म मरण को कहते हैं, अच्छे बुरे कर्मों का उपभोग ‘फल’ कहलाता है। फल दो प्रकार का होता है, एक ‘दुख’ जिसे बन्धन कहते हैं द्वितीय ‘अपवर्ग’ जिसे मुक्ति कहते हैं, इन पर अधिक वाद-विवाद आगे सूत्रों में आयेगी।
प्रश्न- ‘आत्मा’ के लक्षण क्या हैं ?