DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :इन्द्रियार्थसंनिकर्षोत्पन्नं ज्ञानमव्यप-देश्यमव्यभिचारि व्यवसायात्मकं प्रत्यक्षम् II1/1/4
सूत्र संख्या :4

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : इन्द्रिय और अर्थ के सम्बन्ध से जो ज्ञान पैदा हो और जिसमें व्यभिचार दोष न हो और सन्देह भी न हो उसे प्रत्यक्ष कहते हैं।

व्याख्या :
प्रश्न-इतना पर्याप्त है कि जो ज्ञान पदार्थ और इन्द्रियों के सम्बन्धी पैदा हो वह प्रत्यक्ष है, इसमें लक्षण को अधिक बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है ? उत्तर-यदि इतना कहा जावे कि जो ज्ञान इन्द्रिय और अर्थ के सम्बन्ध से पैदा हो वह प्रत्यक्ष है तो भ्रांति को भी प्रत्यक्ष मानना पड़ेगा जैसे कि दूर से बालू को पानी जान लेने में बालु और आंख का सम्बन्ध है दूर से आंख उसको पानी अनुभव करती है,किन्तु निकट जाने पर बालु ज्ञात होता है तो उस अनिश्चित ज्ञान(भ्रांति) को प्रत्यक्ष मानना पड़ेगा इस वास्ते बतला दिया कि वह ज्ञान व्यभि-चारादि दोष रहित हो। प्रश्न-इन्द्रिय और अर्थ के सम्बन्ध से जो ज्ञान पैदा होगा वह तो प्रमति कहलाएगा, प्रमाण कैसे हो सकता है ? उत्तर-इन्द्रिय और अर्थ के सम्बन्ध से जो ज्ञान पैदा होगा वह प्रत्यक्ष ज्ञान है और उसका कारण अर्थात् उसके होने का साधन इन्द्रियां प्रत्यक्ष प्रमाण है। पश्न-प्रत्यक्ष कितने प्रकार का होता है ? उत्तर-पांच ज्ञान इन्द्रियों के कारण से पांच प्रकार का प्रत्यक्ष होता है। चक्ष से होने वाला, प्रत्यक्ष जिससे वस्तु का आकार लम्बाई-चौड़ाई इत्यादि का ज्ञान होता है। द्वितीय क्षेत्र प्रत्यक्ष कानों के द्वारा होता है। जिसमें शब्द के अच्छे-बुरे और उसके भाव का ज्ञान होता है। तृतीय-घ्राण प्रत्यक्ष जो नासिका द्वारा होता है, इससे सुगन्ध-दुर्गन्ध का ज्ञान होता है। चतुर्थ रसना, जिहृा से जो प्रत्यक्ष होता है, जिसके द्वारा कड़वे-मीठे कटु इत्यादिक रसों का ज्ञान होता है। पंचम(त्वचा) जो प्रत्यक्ष खाल के द्वारा होता है, जिसे छूना कहते हैं, उससे गर्मी-सर्दी-नर्मी इत्यादिक का ज्ञान होता है। प्रश्न-क्या प्रत्यक्ष प्रमाण से जो ज्ञान होता है वह संदिग्ध भी होता है। जिससे यह लक्षण सिद्ध हो कि यह ज्ञान निश्चित है। उत्तर-दूर से किसी वृक्ष के ठुन्ट को देखकर बहुधा विचार होता है कि वह मनुष्य है या ठूँठ ? इसी प्रकार भ्रांति भी इन्द्रियों के सम्बन्ध ही से होती है, इसलिए जो ज्ञान निश्चित अर्थात निभ्रन्ति जिसमें भ्रांत का लेश न हो इन्द्रियों के द्वारा किसी वस्तु का होता है और उसमें फर्क नहीं पाया जाय और वह नाम सुनकर स्मृति सरीखा न हो तो उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं और इन्द्रियें प्रत्यक्ष प्रमाण कहलाती हैं। प्रश्न-अनुमान किसे कहते हैं, उसका लक्षण क्या है ?

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